जयपुर। दीपावली की तारीख को लेकर देशभर में बनी असंमजस की स्थिति को छोटीकाशी के संतों-महंतों, ज्योतिषियों और पंचांग निर्माताओं ने मार्च में ही भांप लिया था। सुभाष चौक पानो का दरीबा स्थित श्री शुक संप्रदाय की प्रधान पीठ श्री सरस निकुंज में धर्म सभा का आयोजन कर सर्वसम्मति से सालभर के आयोजनों की तिथि और तारीख तय की। उसके अनुसार 31 अक्टूबर को दिवाली मनाना सुनिश्चित हुआ। धर्म सभा का आयोजन करने वाली संस्था आर्ष संस्कृति दिग्दर्शक संस्था ने शनिवार को धर्म सभा में सर्व सम्मति से लिए गए पर्वों का कलेंडर पुन:आम जनता के लिए जारी किया।
श्री शुक संप्रदाय पीठाधीश्वर अलबेली माधुरी शरण महाराज के सान्निध्य में आयोजित धर्म सभा में छोटीकाशी के सभी प्रमुख मंदिरों के संत-महंत, ज्योतिषाचार्य और पंचांग निर्माता तथा अन्य विद्वान उपस्थित थे। जो उपस्थित नहीं हुए उन्होंने पर्वों को लेकर अपनी सम्मति प्रकट की थी।
काशी विद्वत परिषद ने स्पष्ट की स्थिति:
विद्वत परिषद ने शनिवार को स्पष्ट कर दिया है कि दीपावली का त्योहार 31 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को शाम 3:54 से 1 नवम्बर को शाम 6:17 तक है। सूर्यास्त के समय में अंतर होने से 1 नवंबर को प्रदोष काल के समय प्रतिपदा तिथि होने से दीपावली पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
काशी विद्वत परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ के महामंत्री और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडे के अनुसार निर्णय सिंधु में लिखा है प्रदोषसमये लक्ष्मी पूजयित्वा तत: क्रमात् दीपवृक्षाश्चदातव्या: शक्त्यादेवगृहेषुच॥ दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथा विधि। वहीं, भविष्य पुराण के अनुसार अयं प्रदोषव्यापिग्राह्य:॥ प्रदोष काल में अमावस्या के रहने पर तथा दूसरे दिन अमावस्या का रजनी से न्यूनतम 1 दण्ड योग होने की स्थिति में 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्रोचित होगा।
संशय की स्थिति में दीपावली का स्पष्ट निर्णय देने से पहले उपर्युक्त दोनों स्थितियों को समझ लेना अति आवश्यक है। इसमें उभयदिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या, दूसरे दिन अमावस्या का रजनी के साथ योग वर्णित है। अत: जिन क्षेत्रों में 1 नवंबर को अमावस्या का प्रदोष के एक भाग से संगति हो भी रही है, वहां पर रजनी से अमावस्या का किसी भी स्थिति में योग नहीं हो रहा है अत: उनके मत से भी अग्रिम दिन यानी एक नवंबर को दीपावली नहीं होगी। इसको पुष्ट करने के लिए स्वयं कमलाकरभट ने भी लिखा है। उल्लेखनीय है कि सनातन धर्म की व्रत पर्व आदि के निर्धारण संबंधी व्यवस्था में गणित द्वारा प्राप्त तिथि, ग्रह, नक्षत्र आदि के मानों के आधार पर धर्मशास्त्र ग्रंथों में वर्णित नियमानुसार किसी भी व्रत-पर्व आदि का निर्धारण किया जाता है।
इस वजह से तिथियों में आ जाता है अंतर: स्थान भेद से व्रत-पर्व आदि के तिथियों में अंतर पडऩा भी स्वाभाविक है, लेकिन कभी कभी गणितीय मानो में भिन्नता या धर्मशास्त्रीय किसी एक भाग, मत का ही अनुसरण करने से एक स्थान पर भी व्रत-पर्व अलग-अलग दिखने लगते हैं। इतना ही नहीं कभी-कभी तो गणितीय मानों में सामानता तथा धर्मशास्त्रीय वचनों की उपलब्धता के बाद भी व्रत-पर्वों की तिथियों में अंतर दृष्टिगत होने लगता है।
ऐसी ही स्थिति कुछ इस बार वर्ष 2024 के दीपावली के संदर्भ में बन रही है, लेकिन जिन पंचांगो में 1 नवंबर को दीपावली लिखा गया है. उनके तिथि मानो को देखकर धर्मशास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर भी 31 अक्टूबर को ही दीपावली सिद्ध हो रही है।
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