जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा कि जैसे किसी राज्य की सीमाएं हमारे अंदर भेद नहीं डाल पाती, वैसे ही जन्म के आधार को भी हमारे अंदर जातिवाद नहीं डालना चाहिए। जैसे शरीर का हिस्सा भले छोटा या बड़ा हो शरीर से अलग नहीं हो सकता वैसे ही कोई भी समाज कमजोर या समृद्ध हो हिंदू समाज से अलग नहीं हो सकता। जोशी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में शुक्रवार को त्रिवेणीनगर स्थित सामुदायिक केन्द्र में आयोजित विजयदशमी उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान की प्रस्तावना में भारत कहकर प्रस्तुत किया है ना कि कर्नाटक, उड़ीसा या तमिलनाडू। देश में तमिल, असम, मणिपुर, महाराष्ट्र हर जगह के लोग भारत माता की जय ही कहते हैं। रहन-सहन, खान पान, कपड़े पहनने के ढंग में अंतर हो सकता है पर भारतवर्ष के लोगों के मन में कभी भी अंतर नहीं आ सकता। उन्होंने सवाल किया कि जन्म के आधार पर जाति तय हो जाती है क्या। ज्योतिर्लिंग 51 शक्ति पीठ किसी जाति के हैं?
जोशी ने कहा कि राम के साथ मर्यादा और पुरुषोत्तम दो नाम जुड़े हैं। कई विपदाओं में यह दो शब्द मार्गदर्शन करते हैं। नकारात्मक शक्तियों का विघटन एवं देवी शक्ति को विकसित करते हैैं। इसी प्रकार संविधान की प्रस्तावना में रविन्द्र नाथ टैगोर ने ’हम’ भारत के लोग हैं लिखा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी भारत माता की जय कहते हैं।
शिक्षा के साथ मिलें संस्कार:
मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश डॉ. राजेन्द्र सिंह चौधरी ने कहा कि विद्यालयों में बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ संघ में प्रचलित शिक्षा देना आवश्यक है। हमारी नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाना है, इन्हें धर्म से दूर नहीं करना है। हमें सनातनी का बहुमान स्थापित करना चाहिए।
उद्बोधन के बाद स्वयंसेवकों द्वारा विभिन्न मार्गों से होते हुए पथ संचलन निकाला। समाज बंधुओं ने जगह-जगह पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया।
उधर, सांगानेर के भगत सिंह पार्क में शौर्य दर्शन -2024 विजयोत्सव मनाया गया।
आज होगा मुख्य आयोजन:
शनिवार को सभी संघ स्थानों पर विजयादशमी उत्सव मनाया जाएगा। इस मौके पर समाज के प्रतिष्ठित लोगों के साथ शस्त्र पूजन भी किया जाएगा। दर्जनों स्थानों से पथ संचलन निकलेंगे।
संघ के विजयादशमी के आयोजन 14 अक्टूबर तक होंगे।
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